मनुष्य अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाता है और वातावरण में इतना अधिक रम जाता है कि उसे अपने पराये का कुछ बोध नहीं रहता। छोटा बालक जहाँ भी आकर्षण देखता है वहीं का हो रहता है यहाँ तक कि अपने माता-पिता तक की याद नहीं करता और खेल-खिलौनों में ही पूरी तरह तन्मय हो जाता है। बड़ी आयु के लोग भी प्रायः यही गलती करते रहते हैं। अपने आपे के स्वरूप को समझने की भूल करते रहते हैं और शरीर आवरण उसकी साज-सज...
प्रकृति में सदैव मौन का साम्राज्य रहता है। पुष्प वाटिका से हमें कोई पुकारता नहीं, पर हम अनायास ही उस ओर खिंचते चले जाते हैं। बड़े से बड़े वृक्षों से लदे सघन वन भी मौन रहकर ही अपनी सुषमा से सारी वसुधा को सुशोभित करते हैं। धरती अपनी धुरी पर शान्त चित्त बैठी सबका भार सम्भाले हुए है। पहाड़ों की ध्वनि किसी ने सुनी नहीं, पर उन्हें अपनी महानता का परिचय देने के लिए उद्घोष नहीं करना पड़ा। पान...
अध्यात्म साधना को ज्ञान और विज्ञान—इन दो पक्षों में विभाजित कर सकते हैं। ज्ञान पक्ष वह है जो पशु और मनुष्य के बीच का अंतर प्रस्तुत करता है और प्रेरणा देता है कि इस सुरदुर्लभ अवसर का उपयोग उसी प्रयोजन के लिए किया जाना चाहिए जिसके लिए वह मिला है। इसके लिए किस तरह सोचना और किस तरह की रीति−नीति अपनाना उचित है, इसे हृदयंगम कराना ज्ञान पक्ष का काम है। स्वाध्याय, सत्संग, कथा, प्रवचन, पाठ, मन...
“हर दिन नया जन्म, हर रात नयी मौत” की मान्यता लेकर जीवनक्रम बनाकर चला जाए तो वर्तमान स्तर से क्रमशः ऊँचे उठते चलना सरल पड़ेगा। मस्तिष्क और शरीर की हलचलें अन्तःकरण में जड़ जमाकर बैठने वाली आस्थाओं की प्रेरणा पर अवलंबित रहती हैं। आध्यात्मिक साधनाओं का उद्देश्य इस संस्थान को प्रभावित एवं परिष्कृत करना ही होता है। इस उद्देश्य की पूर्ति में वह साधना बहुत ही उपयोगी सिद्ध होती है, जिसमे...
पदार्थ की तरह व्यक्ति भी मूलतः अनगढ़ होता है। उसे सँभालने, सजाने से उपयोगिता बढ़ती है और सौन्दर्य निखरता है। अनगढ़ मिट्टी पैरों के तले कुचलती रहती है, पर जब इसके परिश्रम करके बर्तन या खिलौने बनाये जाते हैं तो उस की विशेषता निखर कर आती है और उससे समुचित लाभ उठाया जाता है। जंगली पौधे कुरूप झाड़ियाँ बनकर अस्त−व्यस्त फैले होते हैं, पर जब कुशल माली द्वारा उन्हें खाद, पानी दिया जाता है...
आनन्दमय कोश जीवात्मा पर चढ़ा अन्तिम आवरण है। अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय के उपरान्त इसी एक की साधना करनी शेष रह जाती है। इस आवरण के हटते की आत्मा को परमात्मा रूप में परिष्कृत होने का अवसर मिल जाता है। तब उसकी स्थिति वैसी हो जाती है जैसी कि वेदान्त में ‘अयमात्मा ब्रह्म’ तत्त्व मसि सोहमस्मि, सच्चिदानंदोऽहम्, शिवोऽहम् आदि उद्घोषों के अंतर्गत प्रतिपादित की गई है। शिर वि...
गर्भाशय में भ्रूण का पोषण माता के शरीर की सामग्री से होता है। आरंभ में भ्रूण, मात्र एक बुलबुले की तरह होता है। तदुपरान्त वह तेजी से बढ़ना आरंभ करता है। इस अभिवृद्धि के लिए पोषण सामग्री चाहिए। उसे प्राप्त करने का उस कोंटर में और कोई आधार नहीं हैं । मात्र माता का शरीर ही वह भण्डार है जहाँ से गर्भस्थ बालक को अपने निर्वाह एवं अभिवर्धन के लिए आवश्यक आहार मिल सकता है। वह मिलता भी है । यह अन...
मस्तिष्कीय क्षमता के चमत्कार सामान्य लोक व्यवहार में पग-पग पर दृष्टि गोचर होते हैं। सूझ-बूझ वाले बुद्धिमान मनुष्य हर क्षेत्र में आगे बढ़ते और सफलता पाते हैं इसके विपरीत मूढ़ मति और मन्द बुद्धि लोग अनुकूल परिस्थितियाँ रहने पर भी पिछड़ी स्थिति में ही पड़े रहते हैं। जीवन की गहन समस्याओं को सुलझाने में , आत्मोत्कर्ष का लाभ प्राप्त करने में भी मनःस्थिति की प्रखरता ही लाभ देती है। ...
गायत्री की उच्च स्तरीय साधना के लिए उसका अलंकारिक स्वरूप पाँच मुख वाला बनाया गया है। इस चित्रण में सूक्ष्म शरीर के पाँच कोशों की प्रसुप्त क्षमता को जागृत करने और इस महाविज्ञान का समुचित लाभ उठाने का संकेत है। ब्रह्म विद्या पंचमुखी है। जीवात्मा का काय कलेवर पाँच भागों में विभक्त माना गया है (1) अन्नमय कोश (2) प्राणमय कोश (3) मनोमय कोश (4) विज्ञानमय कोश (5) आनंदमय कोश । कोश का अर्थ है भण्डार-...
विज्ञानमय कोश आस्थाओं, आकांक्षाओं और संवेदनाओं को केन्द्र माना गया है। व्यक्तित्व वहीं बढ़ता और ढलता है। जीवन प्रवाह की दिशा धारा उसी उद्गम स्रोत से निर्धारित, नियंत्रित होती है। अस्तु उत्कृष्टता के अनुपात से उसे अन्नमय कोश -प्राण मय कोश -मनोमय कोश से ऊपर स्थान दिया गया है। इस स्तर की साधना करने से स्थूल और सूक्ष्म जगत पर समान रूप से अधिकार मिलता है। भौतिक और आत्मिक सिद्धियों का द...
उन्नीसवीं शताब्दी का अंतिम समय था। ठाकुरदास नामक एक वयोवृद्ध कोलकता में रहता था। उसके परिवार में केवल एक बच्चा और पत्नी थी। इस सीमित परिवार का भरण-पोषण भी ठीक प्रकार से न हो पाता। नियति ने उन्हें मेदिनीपुर जिले के एक गाँव में ला पटका। वहाँ ठाकुरदास को दो रुपये महावार की नौकरी मिली। कालाँतर में उनका देहाँत हो गया। पत्नी के कंधों पर सारे परिवार का दायित्व आया। इसी तरह कई वर्ष बीत ग...
डॉक्टर सर टामस रो ने बादशाह शाहजहाँ की लड़की का इलाज किया और इसके प्रत्युपकार में शाहजहाँ ने मनचाहा इनाम माँगने के लिए कहा। सर टाँमर रो ने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए कुछ न माँगकर इंग्लैंड से आने वाले माल पर से चुंगी हटाने की माँग की, जो स्वीकार कर ली गई। इससे इनाम माँगने वाले का व्यक्तिगत लाभ तो कुछ न हुआ, पर उनके देश से बिना चुंगी चुकाए वह माल भारत में सस्ता बिकने लगा, उससे उनके देश का...
ओहियो के जंगल में गारफील्ड की विधवा माता रहती थी। लकड़ी काट कर गाँवों में बेचने जाती, तो लड़के को झोपड़ी में बंद करके लगा जाती, ताकि जंगल के भेड़िये उसे खा न जाये। राज को माँ उसे दुलार करती और कुछ पढ़ाती॥ बड़ा होकर माँ-बेटे ने एक खच्चर ले लिया और लकड़ियाँ सिर पर ढोने की अपेक्षा उसी पर लाद कर ले जाने लगे। गारफील्ड को पढ़ने भी पढ़ाई भी पढ़ने लगा और ज्ञानवर्धक साहित्य भी। युवा होते-होते ब...
वर्नार्डशा के एक डॉक्टर मित्र थे। वे अक्सर बीमार रहते थे। शा न कहलवा भेजा कभी आप फुरसत में हों तो मेरा मुआइना कर जायें। डॉक्टर तुरन्त दौड़े आये। पर सीढ़ियों पर चढ़ते-चढ़ते हाँफ गये। शा ने उन्हें आराम-कुर्सी दी और एक गिलास पानी पिलाया। कहा- देखा आपने मैं उम्र में आपसे कितना बड़ा हूँ और इन्हीं सीढ़ियों पर दिन में तीन बार चढ़ता उतरता हूँ। कभी हाँफता नहीं आप कहें तो वह नुस्खा आपको भी बत...
न्यूयार्क के एक प्रसिद्ध मेयर लागाडिया को जो सुप्रबन्ध के लिए प्रसिद्ध थे− पुलिस अदालत के मुकदमों में बड़ी रुचि थी। इसलिए वे अकसर पुलिस के मुकदमों की अध्यक्षता स्वयं किया करते थे। एक दिन पुलिस ने एक चोर पर मुकदमा चलाया कि उसने एक रोटी चुराई है। मेयर ने निर्णय सुनाया, “चूँकि अपराधी ने चोरी की है इसलिए उस पर दस डालर अर्थदण्ड किया जाता है” और तुरन्त उसने अपनी जेब से दस डालर निकाल कर...
रूस के उक्रेन प्रान्त के प्रीलुका गाँव में एक तंनेबर का घर। पिता स्वयं ताँबे के बर्तनों को बनाने का काम करते थे। अतः इच्छा थी कि पुत्र बड़ा होकर औद्योगिक रसायनविद् बने। साधन तो अधिक थे नहीं। तभी घर की कन्या बीमार पड़ी। डिप्थीरिया ने उसे अपनी चपेट में ले लिया। मृत्यु का ग्रास बनी बहिन को देखकर भाई का अन्तःकरण पीड़ा से सिहर उठा। कल तक दोनों साथ खेलते, खाते, विनोद करते थ...
दो सहोदर भ्राता। पर स्वभाव में जमीन आसमान का अन्तर। बड़ा भाई धार्मिक विचारों के प्रति निष्ठावान् और दूसरा दुर्व्यसनों का दास। दोनों ही एक मुनि के पास पहुँचे। मुनि थे भूत और भविष्य की जानकारी रखने वाले। मुनि को प्रणाम कर पास से बिछे आसन पर बैठ गये। मुनि ने आशीर्वाद दिया और बताया कि एक माह बाद बड़े भाई को फाँसी की सजा मिलेगी और छोटे भाई को राज सिंहासन। यह तो दोनों ही जानते थे कि मुनि...
लोग इस बात का ताना-बाना बुनते रहते हैं कि किस तरह जिया जाना चाहिए, यह पर कोई बिरले ही सोचते हैं कि क्यों जीना चाहिए ? जीवन के प्रति हमारा दृष्टिकोण स्पष्ट होना चाहिए। लक्ष्य विहीन जिन्दगी हवा में उड़ते हुए पत्तों की तरह दिशा विहीन इधर-उधर छितराती रहेगी और उसका न तो कुछ प्रतिफल निकलेगा और न स्वाद मिलेगा। ठाठ-बाठ के साधनों से अथवा अभाव ग्रस्त परिस्थितियों में रहने से जीवन तत्व के मूल्...
शिवाजी उन दिनों मुगलों के विरुद्ध छापा मार युद्ध लड़ रहे थे। रात को थके माँदे वे एक वनवासी बुढ़िया की झोंपड़ी में जा पहुँचे और कुछ खाने-पीने की याचना करने लगे। बुढ़िया के घर में कोंदों थी सो उसने प्रेमपूर्वक भात पकाया और पत्तल पर उसके सामने परस दिया। शिवाजी बहुत भूखे थे। सो सपाटे से भात खाने की आतुरता में उंगलियां जला बैठे और तुम्हें मुंह से फूँककर जलन शान्त करने लगे। बुढ़िया ने आ...
प्लाइमाउथ की एक महिला डा. सैमुअल जान्सन के शब्दकोश के पृष्ठ पलट रही थी। उसकी दृष्टि तक परिभाषा पर अटक गई। उसे लगा कि यह परिभाषा गलत है पर इतने बड़े साहित्यकार के सम्बन्ध में एकदम ऐसा निर्णय करना उचित न था। परिभाषा के शब्दों को उसने कई बार ध्यान से पढ़ा और समझने का प्रयास किया अब वह इस निश्चय पर पहुँच चुकी थी कि जानसन की परिभाषा बिल्कुल गलत है। उसकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। एक विद्व...