देवियो भाइयो! यह दुनिया बड़ी निकम्मी है। पड़ोसी के साथ आपने जरा सी भलाई कर दी, सहायता कर दी, तो वह चाहेगा कि और ज्यादा मदद कर दे। नहीं करेंगे, तो वह नेकी करने वाले की बुराई करेगा। दुनिया का यह कायदा है कि आपने जिस किसी के साथ में जितनी नेकी की होगी, वह आपका उतना ही अधिक बैरी बनेगा। उतना ही अधिक दुश्मन बनेगा; क्योंकि जिस आदमी ने आपसे सौ रुपये पाने की इच्छा की थी और आपने उसे पन्द्रह रुपये दिये...
देवियो, भाइयो! मनुष्य को इस सांसारिक जीवन की सफलता के लिए दो चीजों की आवश्यकता है-पहला है श्रम और दूसरा ज्ञान । श्रम के द्वारा हम मेहनत करते हैं, मजदूरी करते हैं तथा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करके संतोष महसूस करते हैं । दूसरी चीज है, ज्ञान । ज्ञान का विकास मनुष्य के श्रम द्वारा होता है तथा उसके बाद मनुष्य की उन्नति होती है । सांसारिक जीवन में श्रम और ज्ञान दोनों की आवश्यकता है । श्रम ह...
देवियो, भाइयो! मनुष्य को इस सांसारिक जीवन की सफलता के लिए दो चीजों की आवश्यकता है-पहला है श्रम और दूसरा ज्ञान। श्रम के द्वारा हम मेहनत करते हैं, मजदूरी करते हैं तथा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करके संतोष महसूस करते हैं। दूसरी चीज है, ज्ञान। ज्ञान का विकास मनुष्य के श्रम द्वारा होता है तथा उसके बाद मनुष्य की उन्नति होती है। सांसारिक जीवन में श्रम और ज्ञान दोनों की आवश्यकता है। श्रम ह...
इस संसार में जानने योग्य अनेक बातें हैं । विद्या के अनेकों सूत्र हैं, खोज के लिए, जानकारी प्राप्त करने के लिए अमित मार्ग हैं। अनेकों विज्ञान ऐसे हैं जिनकी बहुत कुछ जानकारी प्राप्त करना मनुष्य की स्वाभाविक वृत्ति है। क्यों? कैसे? कहाँ? कब? के प्रश्न हर क्षेत्र में वह फेंकता है। इस जिज्ञासा भाव के कारण ही मनुष्य अब तक इतना ज्ञान सम्पन्न और साधन सम्पन्न बना है। सचमुच ज्ञान ही जीवन का प्...
इस संसार में जानने योग्य अनेक बातें है । विद्या के अनेकों सूत्र हैं, खोज के लिए, जानकारी प्राप्त करने के लिए, अमित मार्ग है । अनेकों विज्ञान ऐसे हैं, जिनकी बहुत कुछ जानकारी मनुष्य की स्वाभाविक वृत्ति है । क्यों ? कैसे ? कहाँ ? कब ? के प्रश्न हर क्षेत्रमें वह फेंकता है । इस जिज्ञासा भाव के कारण ही मनुष्य अब तक इतना ज्ञान संपन्न और साधन संपन्न बना है । सचमुच ज्ञान ही जीवन का प्रकाश स्तंभ है ।...
गायत्री वह दैवी शक्ति है जिससे सम्बन्ध स्थापित करके मनुष्य अपने जीवन विकास के मार्ग में बड़ी सहायता प्राप्त कर सकता है। परमात्मा की अनेक शक्तियाँ हैं, जिनके कार्य और गुण पृथक् पृथक् हैं। उन शक्तियों में गायत्री का स्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यह मनुष्य को सद्बुद्धि की प्रेरणा देती है। गायत्री से आत्मसम्बन्ध स्थापित करने वाले मनुष्य में निरन्तर एक ऐसी सूक्ष्म एवं चैतन्य विद...
मित्रो! मुझे मथुरा की एक घटना याद आ जाती है । मथुरा में एक बार रामलीला हो रही थी । रामलीला में कुछ बच्चों को बंदर बना दिया, कुछ को रीछ, नल, नील और हनुमान । एक को लंगूर बना दिया । लंगूर कैसा होता है ? कैसे बनाया ? उन्होंने लंगूर ऐसे बनाया कि उस बच्चे के शरीर पर शीरा पोत दिया । शीरा जानते हैं, किससे बनता है ? गुड़ में से निकलता है । बच्चों ने आपस में रूई चिपका दी और वह बन गया लंगूर । उसके एक पूँछ लगा...
गायत्री वह दैवी शक्ति है जिससे सम्बन्ध स्थापित करके मनुष्य अपने जीवन विकास के मार्ग में बड़ी सहायता प्राप्त कर सकता है। परमात्मा की अनेक शक्तियाँ हैं, जिनके कार्य और गुण पृथक् पृथक् हैं। उन शक्तियों में गायत्री का स्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यह मनुष्य को सद्बुद्धि की प्रेरणा देती है। गायत्री से आत्मसम्बन्ध स्थापित करने वाले मनुष्य में निरन्तर एक ऐसी सूक्ष्म एवं चैतन्य विद...
मित्रो! मुझे मथुरा की एक घटना याद आ जाती है । मथुरा में एक बार रामलीला हो रही थी । रामलीला में कुछ बच्चों को बंदर बना दिया, कुछ को रीछ, नल, नील और हनुमान । एक को लंगूर बना दिया । लंगूर कैसा होता है ? कैसे बनाया ? उन्होंने लंगूर ऐसे बनाया कि उस बच्चे के शरीर पर शीरा पोत दिया । शीरा जानते हैं, किससे बनता है ? गुड़ में से निकलता है । बच्चों ने आपस में रूई चिपका दी और वह बन गया लंगूर । उसके एक पूँछ लगा...
निःसंदेह कर्म की बड़ी गहन है। धर्मात्माओं को दुःख, पापियों को सुख, आलसियों को सफलता, उद्योगशीलों को असफलता, विवेकवानों पर विपत्ति, मूर्खों के यहाँ सम्पत्ति, दंभियों को प्रतिष्ठा, सत्यनिष्ठों को तिरस्कार प्राप्त होने के अनेक उदाहरण इस दुनियाँ में देखे जाते हैं। कोई जन्म से ही वैभव लेकर पैदा होते हैं, किन्हीं को जीवन भर दुःख ही दुःख भोगने पड़ते हैं। सुख और सफलता का जो नियम निर्धारित है...
आत्मिकी एक सर्वांगपूर्ण आत्म- परिष्कार का विज्ञान है। अध्यात्म धर्म- धारणा इत्यादि नामों से इसे पुकारा जाता रहा है ।। अध्यात्म क्षेत्र को विज्ञान की ओर से सतत् चुनौती मिलती रहती है क्योंकि उस पर भ्रान्तियों मूढ़- मान्यताओं का एक कुहासा छाया हुआ है ।। अध्यात्म के शाश्वत सनातन अनादि रूप को ऋषियों ने आप्तवचनों के माध्यम से प्रकट किया एवं वही आज हमारे समक्ष बदलते हुए रूप में विद्यमा...
निःसंदेह कर्म की गति बड़ी गहन है । धर्मात्माओं को दुःखपापियों को सुख, आलसियों को सफलता, उधोगशीलों को असफलता, विवेकवानों पर विपत्ति, के यहाँ संपत्ति, दंभियोंको प्रतिष्ठा, सत्यनिष्ठों को तिरस्कार प्राप्त होने के अनेक उदाहरण इस दुनियाँ में देखे जाते हैं कोई जन्म से ही वैभव लेकर पैदा होते हैं, किन्हीं को जीवन भर दुःख ही दुःख भोगने पड़ते हैं? सुख और सफलता के जो नियम निर्धारित हैं, वेसर...
वैज्ञानिक अध्यात्म में वैज्ञानिक जीवन दृष्टिं एवं आध्यात्मिक जीवन मूल्यों का सुखद समन्वय है। वैज्ञानिक जीवन दृष्टिं में पूर्वाग्रहों, मूढ़ताओं एवं भ्रामक मान्यताओं का कोई स्थान नहीं है। यहाँ तो तर्क संगत, औचित्य निष्ठ, उद्देश्यपूर्ण व सत्यान्वेषी जिज्ञासु भाव ही सम्मानित होते हैं। इसमें रूढिय़ाँ नहीं प्रायोगिक प्रक्रियाओं के परिणाम ही प्र?...
वैज्ञानिक अध्यात्म में वैज्ञानिक जीवन दृष्टिं एवं आध्यात्मिक जीवन मूल्यों का सुखद समन्वय है। वैज्ञानिक जीवन दृष्टिं में पूर्वाग्रहों, मूढ़ताओं एवं भ्रामक मान्यताओं का कोई स्थान नहीं है। यहाँ तो तर्क संगत, औचित्य निष्ठ, उद्देश्यपूर्ण व सत्यान्वेषी जिज्ञासु भाव ही सम्मानित होते हैं। इसमें रूढिय़ाँ नहीं प्रायोगिक प्रक्रियाओं के परिणाम ही प्रामाणिक माने जाते हैं। सूत्र वाक्...
ईश्वर छोटी- मोटी भेंट- पूजाओं या गुणगान से प्रसन्न नहीं होता। ऐसी प्रकृति तो क्षुद्र लोगों की होती है। ईश्वर तो न्यायनिष्ठ और विवेकवान है। व्यक्तित्त्व में आदर्शवादिता का समावेश होने पर जो गरिमा उभरती है, उसी के आधार पर वह प्रसन्न होता और अनुग्रह बरसाता है। प्रतीक पूजा की अनेक विधियाँ हैं, उन सभी का उद्देश्य एक ही है, मनुष्य के विकारों को हटाकर, संस्कारों को उभारकर, दैवी अनुग्रह के...
ईश्वर छोटी- मोटी भेंट- पूजाओं या गुणगान से प्रसन्न नहीं होता। ऐसी प्रकृति तो क्षुद्र लोगों की होती है। ईश्वर तो न्यायनिष्ठ और विवेकवान है। व्यक्तित्त्व में आदर्शवादिता का समावेश होने पर जो गरिमा उभरती है, उसी के आधार पर वह प्रसन्न होता और अनुग्रह बरसाता है। प्रतीक पूजा की अनेक विधियाँ हैं, उन सभी का उद्देश्य एक ही है, मनुष्य के विकारों को हटाकर, संस्कारों को उभारकर, दैवी अनुग्रह के...
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वरःगुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्रीगुरवे नमःगुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म है; उन सद्गुरु को प्रणाम ।अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः...
इस शिविर में मैं उस अध्यात्म को आपको सिखाने वाला हूँ जो मुझे मेरे गुरु ने सिखाया है और उसका परिणाम नगद धर्म है । इससे आपको क्या मिलेगा ? इससे आपको भीतर से एक ऐसी चीज मिलेगी, जिसे संतोष कहते हैं । संतोष किसे कहते हैं ? बेटे, संतोष उसे कहते हैं, जिसके कारण आदमी मस्ती में झूमता रहता है, खुशी से झूमता रहता है । आदमी की परेशानियों दूर हो जाती हैं । न आदमी को ट्रैंक्यूलाइजर की गोलियों खानी पड़ती...
इस शिविर में मैं उस अध्यात्म को आपको सिखाने वाला हूँ जो मुझे मेरे गुरु ने सिखाया है और उसका परिणाम नगद धर्म है । इससे आपको क्या मिलेगा ? इससे आपको भीतर से एक ऐसी चीज मिलेगी, जिसे संतोष कहते हैं । संतोष किसे कहते हैं ? बेटे, संतोष उसे कहते हैं, जिसके कारण आदमी मस्ती में झूमता रहता है, खुशी से झूमता रहता है । आदमी की परेशानियों दूर हो जाती हैं । न आदमी को ट्रैंक्यूलाइजर की गोलियों खानी पड़ती...
गायत्री का तेईसवाँ अक्षर 'द' हमको आत्मज्ञान और आत्म-कल्याण का मार्ग दिखलाता है- दर्शन आत्मन: कृष्ण जानीयादात्म गौरवम् । ज्ञात्वा तु तत्तदात्मानं पूर्णोन्नति पथः नयेत् ।। आत्मा को देखे, आत्मा को जाने, उसके गौरव को पहचाने और आत्मोन्नति के मार्ग पर चले ।' मनुष्य महान पिता का सबसे प्रिय पुत्र है । सृष्टि का मुकुटमणि होने के कारण उसका गौरव और उत्तरदायित्व भी महान है । यह महत्ता उसके दुर...
देवियो भाइयो! यह दुनिया बड़ी निकम्मी है। पड़ोसी के साथ आपने जरा सी भलाई कर दी, सहायता कर दी, तो वह चाहेगा कि और ज्यादा मदद कर दे। नहीं करेंगे, तो वह नेकी करने वाले की बुराई करेगा। दुनिया का यह कायदा है कि आपने जिस किसी के साथ में जितनी नेकी की होगी, वह आपका उतना ही अधिक बैरी बनेगा। उतना ही अधिक दुश्मन बनेगा; क्योंकि जिस आदमी ने आपसे सौ रुपये पाने की इच्छा की थी और आपने उसे पन्द्रह रुपये दिये...
देवियो, भाइयो! मनुष्य को इस सांसारिक जीवन की सफलता के लिए दो चीजों की आवश्यकता है-पहला है श्रम और दूसरा ज्ञान । श्रम के द्वारा हम मेहनत करते हैं, मजदूरी करते हैं तथा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करके संतोष महसूस करते हैं । दूसरी चीज है, ज्ञान । ज्ञान का विकास मनुष्य के श्रम द्वारा होता है तथा उसके बाद मनुष्य की उन्नति होती है । सांसारिक जीवन में श्रम और ज्ञान दोनों की आवश्यकता है । श्रम ह...
देवियो, भाइयो! मनुष्य को इस सांसारिक जीवन की सफलता के लिए दो चीजों की आवश्यकता है-पहला है श्रम और दूसरा ज्ञान। श्रम के द्वारा हम मेहनत करते हैं, मजदूरी करते हैं तथा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करके संतोष महसूस करते हैं। दूसरी चीज है, ज्ञान। ज्ञान का विकास मनुष्य के श्रम द्वारा होता है तथा उसके बाद मनुष्य की उन्नति होती है। सांसारिक जीवन में श्रम और ज्ञान दोनों की आवश्यकता है। श्रम ह...
इस संसार में जानने योग्य अनेक बातें हैं । विद्या के अनेकों सूत्र हैं, खोज के लिए, जानकारी प्राप्त करने के लिए अमित मार्ग हैं। अनेकों विज्ञान ऐसे हैं जिनकी बहुत कुछ जानकारी प्राप्त करना मनुष्य की स्वाभाविक वृत्ति है। क्यों? कैसे? कहाँ? कब? के प्रश्न हर क्षेत्र में वह फेंकता है। इस जिज्ञासा भाव के कारण ही मनुष्य अब तक इतना ज्ञान सम्पन्न और साधन सम्पन्न बना है। सचमुच ज्ञान ही जीवन का प्...
इस संसार में जानने योग्य अनेक बातें है । विद्या के अनेकों सूत्र हैं, खोज के लिए, जानकारी प्राप्त करने के लिए, अमित मार्ग है । अनेकों विज्ञान ऐसे हैं, जिनकी बहुत कुछ जानकारी मनुष्य की स्वाभाविक वृत्ति है । क्यों ? कैसे ? कहाँ ? कब ? के प्रश्न हर क्षेत्रमें वह फेंकता है । इस जिज्ञासा भाव के कारण ही मनुष्य अब तक इतना ज्ञान संपन्न और साधन संपन्न बना है । सचमुच ज्ञान ही जीवन का प्रकाश स्तंभ है ।...
गायत्री वह दैवी शक्ति है जिससे सम्बन्ध स्थापित करके मनुष्य अपने जीवन विकास के मार्ग में बड़ी सहायता प्राप्त कर सकता है। परमात्मा की अनेक शक्तियाँ हैं, जिनके कार्य और गुण पृथक् पृथक् हैं। उन शक्तियों में गायत्री का स्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यह मनुष्य को सद्बुद्धि की प्रेरणा देती है। गायत्री से आत्मसम्बन्ध स्थापित करने वाले मनुष्य में निरन्तर एक ऐसी सूक्ष्म एवं चैतन्य विद...
मित्रो! मुझे मथुरा की एक घटना याद आ जाती है । मथुरा में एक बार रामलीला हो रही थी । रामलीला में कुछ बच्चों को बंदर बना दिया, कुछ को रीछ, नल, नील और हनुमान । एक को लंगूर बना दिया । लंगूर कैसा होता है ? कैसे बनाया ? उन्होंने लंगूर ऐसे बनाया कि उस बच्चे के शरीर पर शीरा पोत दिया । शीरा जानते हैं, किससे बनता है ? गुड़ में से निकलता है । बच्चों ने आपस में रूई चिपका दी और वह बन गया लंगूर । उसके एक पूँछ लगा...
गायत्री वह दैवी शक्ति है जिससे सम्बन्ध स्थापित करके मनुष्य अपने जीवन विकास के मार्ग में बड़ी सहायता प्राप्त कर सकता है। परमात्मा की अनेक शक्तियाँ हैं, जिनके कार्य और गुण पृथक् पृथक् हैं। उन शक्तियों में गायत्री का स्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यह मनुष्य को सद्बुद्धि की प्रेरणा देती है। गायत्री से आत्मसम्बन्ध स्थापित करने वाले मनुष्य में निरन्तर एक ऐसी सूक्ष्म एवं चैतन्य विद...
मित्रो! मुझे मथुरा की एक घटना याद आ जाती है । मथुरा में एक बार रामलीला हो रही थी । रामलीला में कुछ बच्चों को बंदर बना दिया, कुछ को रीछ, नल, नील और हनुमान । एक को लंगूर बना दिया । लंगूर कैसा होता है ? कैसे बनाया ? उन्होंने लंगूर ऐसे बनाया कि उस बच्चे के शरीर पर शीरा पोत दिया । शीरा जानते हैं, किससे बनता है ? गुड़ में से निकलता है । बच्चों ने आपस में रूई चिपका दी और वह बन गया लंगूर । उसके एक पूँछ लगा...
निःसंदेह कर्म की बड़ी गहन है। धर्मात्माओं को दुःख, पापियों को सुख, आलसियों को सफलता, उद्योगशीलों को असफलता, विवेकवानों पर विपत्ति, मूर्खों के यहाँ सम्पत्ति, दंभियों को प्रतिष्ठा, सत्यनिष्ठों को तिरस्कार प्राप्त होने के अनेक उदाहरण इस दुनियाँ में देखे जाते हैं। कोई जन्म से ही वैभव लेकर पैदा होते हैं, किन्हीं को जीवन भर दुःख ही दुःख भोगने पड़ते हैं। सुख और सफलता का जो नियम निर्धारित है...
आत्मिकी एक सर्वांगपूर्ण आत्म- परिष्कार का विज्ञान है। अध्यात्म धर्म- धारणा इत्यादि नामों से इसे पुकारा जाता रहा है ।। अध्यात्म क्षेत्र को विज्ञान की ओर से सतत् चुनौती मिलती रहती है क्योंकि उस पर भ्रान्तियों मूढ़- मान्यताओं का एक कुहासा छाया हुआ है ।। अध्यात्म के शाश्वत सनातन अनादि रूप को ऋषियों ने आप्तवचनों के माध्यम से प्रकट किया एवं वही आज हमारे समक्ष बदलते हुए रूप में विद्यमा...
निःसंदेह कर्म की गति बड़ी गहन है । धर्मात्माओं को दुःखपापियों को सुख, आलसियों को सफलता, उधोगशीलों को असफलता, विवेकवानों पर विपत्ति, के यहाँ संपत्ति, दंभियोंको प्रतिष्ठा, सत्यनिष्ठों को तिरस्कार प्राप्त होने के अनेक उदाहरण इस दुनियाँ में देखे जाते हैं कोई जन्म से ही वैभव लेकर पैदा होते हैं, किन्हीं को जीवन भर दुःख ही दुःख भोगने पड़ते हैं? सुख और सफलता के जो नियम निर्धारित हैं, वेसर...
वैज्ञानिक अध्यात्म में वैज्ञानिक जीवन दृष्टिं एवं आध्यात्मिक जीवन मूल्यों का सुखद समन्वय है। वैज्ञानिक जीवन दृष्टिं में पूर्वाग्रहों, मूढ़ताओं एवं भ्रामक मान्यताओं का कोई स्थान नहीं है। यहाँ तो तर्क संगत, औचित्य निष्ठ, उद्देश्यपूर्ण व सत्यान्वेषी जिज्ञासु भाव ही सम्मानित होते हैं। इसमें रूढिय़ाँ नहीं प्रायोगिक प्रक्रियाओं के परिणाम ही प्र?...
वैज्ञानिक अध्यात्म में वैज्ञानिक जीवन दृष्टिं एवं आध्यात्मिक जीवन मूल्यों का सुखद समन्वय है। वैज्ञानिक जीवन दृष्टिं में पूर्वाग्रहों, मूढ़ताओं एवं भ्रामक मान्यताओं का कोई स्थान नहीं है। यहाँ तो तर्क संगत, औचित्य निष्ठ, उद्देश्यपूर्ण व सत्यान्वेषी जिज्ञासु भाव ही सम्मानित होते हैं। इसमें रूढिय़ाँ नहीं प्रायोगिक प्रक्रियाओं के परिणाम ही प्रामाणिक माने जाते हैं। सूत्र वाक्...
ईश्वर छोटी- मोटी भेंट- पूजाओं या गुणगान से प्रसन्न नहीं होता। ऐसी प्रकृति तो क्षुद्र लोगों की होती है। ईश्वर तो न्यायनिष्ठ और विवेकवान है। व्यक्तित्त्व में आदर्शवादिता का समावेश होने पर जो गरिमा उभरती है, उसी के आधार पर वह प्रसन्न होता और अनुग्रह बरसाता है। प्रतीक पूजा की अनेक विधियाँ हैं, उन सभी का उद्देश्य एक ही है, मनुष्य के विकारों को हटाकर, संस्कारों को उभारकर, दैवी अनुग्रह के...
ईश्वर छोटी- मोटी भेंट- पूजाओं या गुणगान से प्रसन्न नहीं होता। ऐसी प्रकृति तो क्षुद्र लोगों की होती है। ईश्वर तो न्यायनिष्ठ और विवेकवान है। व्यक्तित्त्व में आदर्शवादिता का समावेश होने पर जो गरिमा उभरती है, उसी के आधार पर वह प्रसन्न होता और अनुग्रह बरसाता है। प्रतीक पूजा की अनेक विधियाँ हैं, उन सभी का उद्देश्य एक ही है, मनुष्य के विकारों को हटाकर, संस्कारों को उभारकर, दैवी अनुग्रह के...
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वरःगुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्रीगुरवे नमःगुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म है; उन सद्गुरु को प्रणाम ।अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः...
इस शिविर में मैं उस अध्यात्म को आपको सिखाने वाला हूँ जो मुझे मेरे गुरु ने सिखाया है और उसका परिणाम नगद धर्म है । इससे आपको क्या मिलेगा ? इससे आपको भीतर से एक ऐसी चीज मिलेगी, जिसे संतोष कहते हैं । संतोष किसे कहते हैं ? बेटे, संतोष उसे कहते हैं, जिसके कारण आदमी मस्ती में झूमता रहता है, खुशी से झूमता रहता है । आदमी की परेशानियों दूर हो जाती हैं । न आदमी को ट्रैंक्यूलाइजर की गोलियों खानी पड़ती...
इस शिविर में मैं उस अध्यात्म को आपको सिखाने वाला हूँ जो मुझे मेरे गुरु ने सिखाया है और उसका परिणाम नगद धर्म है । इससे आपको क्या मिलेगा ? इससे आपको भीतर से एक ऐसी चीज मिलेगी, जिसे संतोष कहते हैं । संतोष किसे कहते हैं ? बेटे, संतोष उसे कहते हैं, जिसके कारण आदमी मस्ती में झूमता रहता है, खुशी से झूमता रहता है । आदमी की परेशानियों दूर हो जाती हैं । न आदमी को ट्रैंक्यूलाइजर की गोलियों खानी पड़ती...
गायत्री का तेईसवाँ अक्षर 'द' हमको आत्मज्ञान और आत्म-कल्याण का मार्ग दिखलाता है- दर्शन आत्मन: कृष्ण जानीयादात्म गौरवम् । ज्ञात्वा तु तत्तदात्मानं पूर्णोन्नति पथः नयेत् ।। आत्मा को देखे, आत्मा को जाने, उसके गौरव को पहचाने और आत्मोन्नति के मार्ग पर चले ।' मनुष्य महान पिता का सबसे प्रिय पुत्र है । सृष्टि का मुकुटमणि होने के कारण उसका गौरव और उत्तरदायित्व भी महान है । यह महत्ता उसके दुर...